भेड़तंत्र- प्रशांत सेठ

सुना होगा तुमने
सपने वो नही होते जो नींद में आते हैं
सपने तो वो होते हैं जो नींद ले जाते हैं
लेकिन
दिन के उजाले में
जागती आँखों से देखे जाते हैं
दिवास्वप्न भी
नही नही,
यथार्थ की अवहेलना कर
क्षमता से ऊँचे ये स्वप्न
देखे नही जाते
ये तो लिखे जाते हैं आजकल
फेसबुक पर

दिन के उजाले में अंधत्व ओढ़े
ये दिवास्वप्न
ले जाते हैं पीछे उस व्यक्ति के
जो दिखा देता है एक और स्वप्न
तुम्हारे दिवास्वप्न की पूर्ति का
क्योंकि
तुम चाहते रहे हमेशा
कोई आये और पहुँचा दे उठाकर
तुमको तुम्हारे स्वप्न तक
बिना श्रम, बिना त्याग के

इसीलिये,
ऐसा होना चाहिये
वैसा नही होना चाहिये की रट लगाते
नीतिशास्त्र और सिद्धांत के अनगिनत ज्ञाता
निकल पड़ते हैं
किसी नमो, रागा या केजरी के पीछे
फेसबुक पर
और अहंकार हो जाते हैं तुष्ट
कर्तव्य की समझकर इति

बड़ा हो जाता है उस दिन
कोई व्यक्ति
जब मर जाता है विचार
विचार के मरते ही
मर जाता है समाज भी
और मरे हुये समाज ही ढूँढा करते हैं
मसीहा
तो, ऐ मसीहाओं के याचक
तुम देखोगे इस बार भी
लोकतंत्र की मृत्यु पर
जन्म लेता हुआ
एक भेड़तंत्र

-प्रशांत सेठ