मसूरी की शाम- सुनीता वालिया

उस रात मैं मसूरी पहुची तो होटल मैनेजर के बारे में पूछा तो रिसेप्शन पर खड़ी एक लड़की ने जवाब दिया -जी मैडम! वो आज जल्दी घर चले गए, सुना है, उनकी सगाई है। अच्छा! यहा प्रीति और राहुल के नाम से रूम बुकिंग होगा, उसकी चाभी दे दीजिए। (मैंने उसकी बातों पर ज्यादा ध्यान न देते हुए पूछा)-हाँ जी!(वहीं खड़ी उस लड़की ने फिर जवाब दिया) कमरे की चाबी ले के मैं कमरे में चली गई। थोड़ी देर बाद मैं शाम को घूमने निकल गई। मुझे मसूरी की शाम बहुत अच्छी लगती थी। थोड़ी देर मालरोड पर घूमने के बाद मैं वही किसी बैंच पर बैठ कर डूबते सूरज को देखने लगी जैसे-जैसे शाम आसमान को नारंगी रंग में रंगने लगी मैं अपने अतीत में खो गई। इस शाम से मेरा 18 साल पहले की पहचान थी। 18 साल हो गए इस शाम से बिछड़े हुए। तभी ठंड लगी तो याद आया कि शॉल तो मैं होटल के कमरे में ही छोड़ आई और मैंने अपनी साड़ी के पल्ले को हाथ से खींच कर अपने चारों तरफ ओढ़ा लिया और होटल की तरफ चल पड़ी। होटल वापस आ कर जैसे ही चाभी मांगी तो हैरान रह गई और बोल उठी- तुम! कुछ देर यूँ ही एक दूसरे को देखते रहे तभी उधर से उसने चुप्पी तोड़ी- हाँ! मैं, इस होटल का मैनेजर। पर तुम यहाँ कैसे? मैं प्रीति और राहुल के साथ आई हूँ। उसने थोड़ा सोच कर बोला-तुम्हारा छोटा भाई पर प्रीति कौन? उसकी पत्नी, अभी नई-नई शादी हुई है उनकी, तो मसूरी घूमने आएंगे कल। उधर से फिर उसने पूछा- तुम आज क्यों? वो रेलगाड़ी के सफ़र का लुत्फ़ उठाना चाहते थे तो मैं कार में आ गई। वैसे भी नवविवाहित जोड़े के साथ… इतना कहते ही मेरे उसने कहा- चलो कॉफी पीते हैं या आज भी तुम डिनर के बाद ही कॉफी पियोगी मैंने नजरें झुका कर मुस्कुराते हुए कहा-नहीं-नहीं। अब मैं पहले भी पी लेती हूँ, तुम्हें सब याद है सचिन? कितने सालों बाद मैंने इतनी जोर से उसका नाम लिया था। मन में तो कई बार नाम ले के पुकारा था फिर हम दोनों खुले आसमान के नीचे वहीं कॉफी पीने के लिए गए तभी उसने वेटर को बुलाया और कान में कुछ कहा और वो भी वहां से गया और एक पैकेट के साथ आया सचिन ने उसमे से शॉल निकली और मेरी तरफ बढ़ाते हुए कहा- तुम आज भी शॉल ले जाना भूल गई थी। मैं ये सोच के हैरान थी कि उसे सब कुछ याद था। तभी कॉफी आ गई और सचिन ने कॉफ़ी मेरी तरफ बढ़ाते हुए कहा- तुम बिल्कुल नहीं बदली। बिल्कुल वैसी ही हो और मैंने हंसते हुए कहा- हाँ! थोड़ा कलमें सफेद हो गई है मेरी और हाँ, तुम्हारी भी! और यह सुन कर वो भी हंसने लगा, तभी मैंने हाथ बढ़ाते हुए कहा-मुबारक़ तुम्हारी सगाई हो गई है आज। सचिन ने कहा- मेरी सगाई नहीं थी, मैं किसी और की सगाई में गया था।अच्छा! मेरा जवाब था। सचिन ने आह भरते हुए कहा- सगाई तो मेरी 18 साल पहले ही हो गई थी।
मैंने उठ कर जाने की इज़ाज़त मांगी और कहा- बहुत थक गई हूँ थोड़ा आराम करना चाहती हूँ। इतना कह कर मैं अपने कमरे की तरफ चली गई। अभी कपड़े बदले ही थे कि तभी दरवाज़े की बैल बजी, पूछने पर जवाब था मैडम डिनर! मैंने दरवाजा खोला और डिनर रखवाया और वेटर चला गया। उसमें एक काग़ज़ था उस पर लिखा था डिनर कर लेना, वरना तुम्हें भूख से नींद नही आएगी। मैं वहीं खिड़की के पास आरामकुर्सी पर बैठ गई और बाहर देखने लगी। रात के अंधेरे में लाइट जली हुई ऐसे लग रही थी जैसे आज सारे तारे टूट कर बिखर गए हों ज़मीं पर बाहर का नजारा देख कर मैं अपने अतीत में पहुँच गई। मुझे याद आया 18 साल पहले जब मैं कॉलेज में पढ़ती थी और सचिन भी उसी कॉलेज में पढ़ रहे थे हम काफी समय से एक दूसरे को जानते थे अच्छे दोस्त बन गए थे। एक शाम वो अपनी माता जी को ले कर मेरे घर पर आए और मेरे पूछने पर उन्होंने जवाब दिया- एक दोस्ती को नया नाम देना चाहता हूं, तभी उसकी माता जी मेरे पिता जी को मिले और कहा मेरे सचिन को आपकी सोनाली बहुत पसंद है पिता जी को सचिन बहुत पसंद आए और हमारी सगाई हो गई सारे कॉलेज में पता चल गया कि मेरी सगाई सचिन के साथ हो गई है इसी बीच हमारा मसूरी का ट्रिप बना सब मुझे सचिन के नाम से छेड़ रहे थे और सचिन उनकी बातों को सुन कर खुश हो रहे थे। मसूरी आ गया बस रुकी तो सचिन ने जल्दी से मेरे हाथ से अटेची पकड़ कर कहा- तुम्हारा सारा बोझ अब मुझे उठाना है। मैंने अटैची देते हुए कहा-लो, ले लो। और हम होटल पहुंचे तो मेरा कमरा सचिन के कमरे के सामने ही था। हम सब सफ़र की थकावट करके आराम कर रहे थे थोड़ी देर बाद सचिन आया और बोले चलो यहां सोने नहीं आए है, मालरोड घूमने चलते है और मैं चल पड़ी। हम मालरोड में घूमे और फिर वही बैंच में बैठ गए और सचिन ने मेरा हाथ पकड़ के कहा कि मैं अपनी जिंदगी की शाम इसी तरह तुम्हारे साथ हाथ पकड़ के सूरज को ढलते हुए देखना चाहता हूँ और तभी ठंड बढ़ गई और सचिन जल्दी से दुकान से शाल ले कर आए और मुझे ओढ़ते हुए बोले- शाल जरुर ले लिया करो साथ में और रात के अंधेरे तक टहलते रहे और खूब बातें की हमने। सचिन शादी के बाद यही रहने को सोच रहे थे क्योंकि वोह मसूरी की शाम को सूरज को ढलते हुए देखना चाहते थे मेरे साथ।
ट्रिप के बाद मैं जब घर पहुंची तो पिता जी की तबीयत बहुत खराब थी और कुछ दिनों के बाद उनकी मृत्यु हो गई और इस सदमे से माँ भी बीमार रहने लगी राहुल मेरा भाई और अंजली बहुत छोटे थे, मैं उन्हें ऐसे छोड़ कर शादी नहीं कर सकती थी, मैंने सचिन को कह दिया मुझे भूल जाओ और शाल लौटा दी। तभी शाल तो आज भी दी है सचिन ने यह सोचते ही मैं वर्तमान में लौट आई और शाल को देखा तो याद आया ये तो वही शाल है। फिर मैं उसी शाल को ओढ़ के बिस्तर पर लेट गई जैसे उस दिन जो प्यार कि गरमाहट थी वोह अभी भी महसूस हो रही थी रात को देर से सोने करके आज सुबह उठने में लेट हो गई। जब उठी तो देखा कि फोन पर 10 कॉल आई थी उसमे से दो मेरे भाई राहुल की थी और 8 कॉल सचिन की। मैंने देखा राहुल ने मुझे टेक्सट मैसेज भी भेजा उसमे लिखा था- दी आज हम देहरादून में ठहरेंगे कल मसूरी आयेगे। Ok का message भेजा।
और सचिन को फ़ोन किया- हेलो! फ़ोन किया था। हां जल्दी से तैयार हो कर बाहर आ जाओ उसने 18 साल पहले वाले सचिन की तरह हुकुम चलाते हुए बोला और मैंने भी हां ठीक है बोल दिया। उसके बोलने में इतना अपनापन था कि कुछ और बोल ही नही पाई। आज सचिन कार के साथ खड़ा मेरा इंतजार कर रहा था। मैंने कहा- जाना है उसने कहा तुम बैठो तो सही और वो मुझे पूरा मसूरी घूमाने लगा फिर हम मंसूरी लेक में बोट में बैठे थे सचिन ने फिर मेरा हाथ पकड़ते हुए कहा- यही रह जाओ मेरे साथ। यूं ही अपनी उम्र की शाम मसूरी की शाम को देखते हुए गुजरना चाहता हूँ तुम्हारे साथ।

-सुनीता वालिया
सैक्टर 42, चण्डीगढ़