माँ और मैं- रश्मि अग्रवाल

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माँ और मैं
माँ!
एक सूत्र के द्वारा तुमसे,
जब जुड़ी मैं तुम्हारी कोख में
तब तुम बाहर से सहलातीं, बतियातीं
मैं अन्दर से सब समझ लेती, सुन लेती
कुछ कही, कुछ अनकही बातें।
तुम्हारे स्पर्श की भाषा,
मैं पढ़ना सीख गई थी,
जिस दिन तुमने मुझे जन्म दिया।
उस दिन,
तुम्हारे ममतामई स्पर्श को महसूस किया था
और जब आँख खुली मेरी,
मैंने देखा साक्षात् वात्सल्य की देवी को।
फिर….
एक-एक दिन,
एक-एक रात,
ममता की बरसात,
बाहों का झूला,
गोदी का पलना,
नरम बिछौना
मेरी दिनचर्या बन गई थी
2
और तू…..?
तू मेरी परिचर्या में जुट गई थी।
माँ!
आज तू नहीं है मेरे पास
मगर मैं महसूसती हूँ तुझे,
और स्वयं को अपनी कोख में।
मैं भी तेरी डगर पर चल रही हूँ।
देख माँ!
मैं भी तेरी ही तरह माँ बन रही हूँ।

-रश्मि अग्रवाल
वाणी अखिल भारतीय हिन्दी संस्थान
(संस्थापक-अध्यक्षा)
बालक राम स्ट्रीट
नजीबाबाद- 246763
(बिजनौर)