माँ- नरेश शांडिल्य

मंदिर की देहरी
भजन गाती मंडली
दाना चुगती चिड़िया
तुलसी का बिरवा
पीपल का पेड़
छड़ी
वॉकर
अस्पताल का स्ट्रेचर…
जब-जब भी दिखते हैं
याद आने लगती है-
माँ…

सब छोड़ गई माँ-
अपना हॉल सा कमरा
ठसाठस अलमारी
लदी-फदी टाँड
छापे लगी दीवारें
भगवान का आला
दवाइयों से भरी स्लैब
छोटे-बड़े मज़बूत
पुराने ट्रंक और बक्से…
और उनमें बंद बेशुमार चीज़ें-
नये-पुराने सिक्कों की थैली
पोटलियों में बँधे मन्नत के पैसे
बेटियों को देने के लिए
नीम के सूखे पत्तों में लिपटीं
जुटाई-ख़रीदी साड़ियाँ
पीतल और काँसे के
पुराने लोटे-गिलास-थालियाँ
हमारे बचपन के गंडे-ताबीज़-तगड़ियाँ
यहाँ तक कि बचपन में
जिनसे खेला करते थे हम
वे कंचे और लट्टू भी…
सब छोड़ गई माँ-
अपनी यादों की तरह!

आज…
जामुन ख़रीदते वक़्त
आँखें भर आईं मेरी
कितने चाव से खाती थी जामुन
माँ…

-नरेश शांडिल्य

समकालीन हिंदी दोहा लेखन में ‘दोहों के आधुनिक कबीर’ के रूप में विख्यात और लोकप्रिय नरेश शांडिल्य एक प्रतिष्ठित कवि, दोहाकार, शायर, नुक्कड़ नाट्य कर्मी और संपादक हैं। विभिन्न विधाओं में आपके 7 कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। आपने अनेक साहित्यिक पुस्तकों का कुशल संपादन भी किया है। एक समीक्षक के रूप में भी आपकी अलग पहचान है।
आपको हिंदी अकादमी, दिल्ली सरकार का साहित्यिक कृति सम्मान (1996), वातायन (लंदन) का अंतरराष्ट्रीय कविता सम्मान (2005), कविता का प्रतिष्ठित परम्परा ऋतुराज सम्मान (2010) प्राप्त है। देश ही नहीं विदेशों में आयोजित अनेकानेक अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों और कवि सम्मेलनों में भी आपने महत्वपूर्ण भागीदारी की है।
साहित्य की अंतरराष्ट्रीय त्रैमासिक पत्रिका अक्षरम संगोष्ठी का आपने 12 वर्षों तक कुशल संपादन किया।

सम्प्रति:
सलाहकार सदस्य : फ़िल्म सेंसर बोर्ड , सूचना व प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार। स्वतंत्र लेखन।

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