मुखौटा न हो- जसवीर त्यागी

लोगों के पास
कई-कई चेहरे थे

चेहरों को और अधिक
आकर्षक और मोहक बनाने के लिए
वे करते रहते थे अनंत जतन

चेहरे ऐसे जिन्हें निहारकर
दूसरे चेहरे वाले हो जाएं फ़िदा

जिनके पास अनेक चेहरे थे
उनके पास आईने भी असंख्य थे
वे अपने चेहरों को
सजाते-सँवारते रहते थे बार-बार

मेरे पास एक अदद चेहरा था
कोई आईना नहीं था
बग़ैर आईने के मेरा चेहरा
एक ही जैसा रहता था

कुछ जानकार बताते भी थे
चेहरे को लुभावना बनाने के
अपने-अपने अनुभव और राज

मैं था कि
सभी जादुई आकर्षणों से बेख़बर
अपने काम में डूबा हुआ

मैं चाहता था
चेहरा कैसा भी क्यों न हो
मेरा चेहरा न लगे
किसी देवता का चेहरा

चेहरे पर न हो
किसी शैतान की हँसी

मेरे चेहरे पर हो
एक मज़दूर की मुस्कुराहट
पेशानी पर हो परिश्रम का पसीना

मेरी यही चाह थी
कि चेहरा तो हो
पर चेहरे पर कोई मुखौटा न हो

-जसवीर त्यागी