मेरे मन की बगिया में- शुचिता श्रीवास्तव

मेरे मन की बगिया में
जब तुम्हारी यादो के फूल खिलते है
क्यों तब पंछी सी कल्पनाये
उड़ जाती है अनंत आकाश में
क्यों मृगशावक सी तुम्हारी नजरे
घेर घेर लेती है मुझको
क्यों रोम रोम कंपकपाते है
तुम्हारे स्पर्श के एहसास मात्र
क्यों नैनो में बस जाती है
अबोध शिशु सी तुम्हारी सूरत
क्यों प्रज्ज्वलित हो उठते है
हजारो दीप एक साथ ह्रदय में
क्यों मुस्कान चली आती है
अधरों पर बिना किसी वजह
दूर कही शहनाई सी बजती है
क्यों असीम वेदना देती है
तुम्हारी अनुपस्थिति
क्यों जोडती है उगलिया
तुम्हारे लौट कर आने के दिन
क्यों टूट जाते है तुम्हारे समछ
बार बार वाक्यों के माले
मेरे मन की बगिया में
जब तुम्हारी यादो के फूल खिलते है

-शुचिता श्रीवास्तव