रहबरों सुन लो- रकमिश सुल्तानपुरी

फँसे हैं राजनेता तक, मिली सरकार है शायद
कि जिसने देश को लूटा वही गद्दार है शायद

सुनो पिछलग्गुओं इक दिन हलाले तुम भी जाओगे
सुना है जालसाजों सा तेरा व्यवहार है शायद

तमन्ना सरफ़रोशी की, इरादे देशभक्ति के
मग़र खलनायकों जैसा हुआ क़िरदार है शायद

बना चारा गरीबों का चलाते धन की जो भट्टी
मसलते है मसलने के वही हक़दार हैं शायद

वतन पर आँच भी आयी ज़रा, तो रहबरों सुन लो
तुम्हारी रहनुमाई पर मेरी दुत्कार है शायद

महल से झाँककर देखे गरीबों के घरौंदें वह
हक़ों को छीन जो पापी बना सरदार हैं शायद

अभी भी वक्त है रकमिश इरादे नेक तुम रखना
वगरना खून की प्यासी यहाँ तलवार है शायद

-रकमिश सुल्तानपुरी