विसर्जन की पात्र- पूनम शर्मा

मैंने देखी है तुम्हारी नज़रें
मुझमें विश्वास ढूंढने लगी हैं
भगवान बनाने लगी हैं एक मूरत को
जानते हो
मूर्तिकार, मूर्ति बनाता है
सुंदर अतिसुन्दर,
पर पुजारी ही
पत्थर की उस मूर्ति की
प्राण प्रतिष्ठा कर
उसे पत्थर से भगवान बना देता है
पूज्य, पूजने योग्य
तुम भी भगवान बनाने आये हो क्या
तुम जिस मूर्ति की बात करते हो
वो तो खंडित है।
और खंडित मूर्ति
मंदिर में स्थापित नहीं होती
वो तो सिर्फ विसर्जन की पात्र होती है
चाहे नदी की कल-कल धार हो, या
भावों का उमड़ता समुद्र

-पूनम शर्मा