सच- मीरा सिंह मीरा

इंसान जब कभी
भीड़ की शगल
इख्तियार किया है
आगजनी हिंसा
लूटपाट किया है
भीड़ की कोई
पहचान नहीं होती
भीड़ में कोई
इंसान नहीं होता
भीड़ न कुछ
सुनता है
नहीं कुछ
समझता है
इसीलिए कहती हूं
नौजवानों समझो
भीड़ का हिस्सा
हरगिज मत बनो
अपने बलिष्ठ कंधो पर
किसी गैर को
बंदूकें मत धरने दो
खुद को इस्तेमाल
मत होने दो
आंखें खोलकर देखो
सच को महसूसो
तुम्हारे हक की
बात करने वाले
क्या कर रहे हैं
तुम्हारे हुकूक की
नीलाम कर रहे हैं
तुम्हारी आंखों में
धूल झोंक रहे हैं
सरेआम उम्मीदों का
कत्ल कर रहे हैं
सोचो समझो
विचार करो
किसी बहकावे में
मत आओ
उनका कुछ न बिगड़ेगा
तुम सर्वस्व गवा दोगे
अपनी बर्बादी की पटकथा
निज हाथों रच दोगे

-मीरा सिंह ‘मीरा’
डुमरांव, जिला- बक्सर
बिहार