साथी थाम लो हाथ मेरा- अमरेन्द्र कुमार

साथी थाम लो हाथ मेरा,
ले चलो कहीं दूर मुझे इस स्वार्थ जगत से,
जहां कहीं बहती हो निस्वार्थ प्रेम की अविरल धारा,
जहां पौधों में फूल तो हो,
मगर वह कांटो से ना भरा हो,
जहां चेहरे पे मुस्कान तो हो,
लेकिन उसके पीछे छिपी शरारत ना हो,
जहां अपना पराया ना हो,

और जहां पराया भी अपना हो,
साथी औरो की तरह तुम भी,
छोड़ ना देना साथ मेरा,
मानवता का घोट कर गला,
तुम भी स्वार्थी ना बन जाना,
विश्वास सूत्र में बंधे मनुज को,
कपट से काट विश्वासघाती ना बन जाना,
सतरंगी दुनिया में खोकर ,तुम गिरगिट ना बन जाना,
अहंकार की नींद में सोयी इस दुनिया में,
मुझे अकेला जगते हुए छोड़ तुम ऐसे ही ना चले जाना,
साथी काश! कोई इंद्रधनुष सा रास्ता होता,
जो हमको लेकर उस प्यारी सी दुनिया में जाता,
जहां परियों का मेला होता, जुगनुओं का टिमटिमाना होता,
जहां रंग-बिरंगी तितलियों का खेला होता,
पक्षियों का चहचहाना होता
फूलों का मन मोहक सुगंध होती,
पेड़ो की ठंड़ी छांव होती
जहां निश्चल प्रेम की अविरल धारा बहती हो,
जहां सभी बंधे हो एकता की डोर से,
साथी समझो वहीं अपना ठांव होगा
वहीं अपना नया गांव होगा

अमरेन्द्र कुमार
आरा, बिहार
मोबाइल- 7991164247
ईमेल- [email protected]