सुबह- श्रीधर प्रसाद द्विवेदी

फागुन मास लगा जब से
तबसे कुछ और बयार बही है।

दक्षिण से मलयानिल आकर
कान सनेहिल प्यार कही है।

आश जगी अनुराग जगा रमणी
निज राग सम्हार रही है।

थाम किवाड़ खड़ी सज कामिनि
प्रीतम पन्थ निहार रही है।

-श्रीधर प्रसाद द्विवेदी