स्वयं से मिलने की यात्रा- दीपक सिंह

स्वयं से मिलने की यात्रा
मुक्ति की यात्रा है!

मैं मुक्त होना चाहता हूं
किन्तु
तुम्हें भूलना नहीं चाहता!

याद है तुम्हें..?
तुम मुझे यात्री कहकर
पुकारती थी

मैं जानता हूं अब यात्री होने का मतलब!

कल मिला था
एक
बौद्ध भिक्षु
उसने मेरी आत्मा को कपड़ों से अलग किया
और कहा..

तुम्हारी आत्मा पर
प्रेम के छाले हैं!

आत्मा पर घाव लिए मुक्ति नहीं मिल सकती!

-दीपक सिंह
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