हर इंसान कुछ-न-कुछ रचता है- जसवीर त्यागी

हर इंसान
कुछ-न-कुछ रचता है

कोई गीत-गजल
तो कोई कविता-कहानी

कोई रंगत और रूप
कोई सुर-सरगम
कोई मूर्ति-महल

और कोई आदर्श-ऊंचाईयां रचता है

कुछ लोग
स्वप्न-संघर्ष रचते हैं

जो इनमें से
कुछ भी नहीं रच पाते

वे निठल्ले
कहाँ बैठते हैं?

वे भी कर्म रत रहते हैं

अपनी-अपनी
सामर्थ्य और शक्ति के अनुसार
कभी चक्रव्यूह
और कभी षड्यंत्र रचते हैं

-जसवीर त्यागी