ग़म की खरीदारी- रकमिश सुल्तानपुरी

अभी रौनक़ है अभी खुशबू है अभी तो खुमारी है
मग़र मालूम है ऐ दोस्त! ये ग़म की खरीदारी है

बन्दिशों में कब रुका नासूर बन आएगा ग़म
तेरे सुरूर-ए-इश्क़ में दर्द-ए-ग़म की गिरफ़्तारी है

दिल, अब दिल न रहा मेरा, ले अब तू सम्हाल इसे
तेरा भी हक़ है और तेरी भी जिम्मेदारी है

कभी मिलो तो आँखों में आँखों को पता हो जाये
मेरी आँखों में तेरी तस्वीर की भी हिस्सेदारी है

भला तू ही बता तेरी तस्वीर से कब तक पूछें
ख़त्म ख़्वाहिश हुई या मुहब्बत की बेक़रारी है

बड़ी मुश्क़िल है, तड़प है वादों में कैद न कर
तेरे हिस्से की तन्हाई भी मुझपर उधारी है

आ मेरे ख़्वाबों को जवां कर दे फ़िर चले जाना
यूँ तो तेरे क़िरदार पर दुनिया की पहरेदारी है

तेरे आग़ोश में रहे’रकमिश’ और दर्द सहे
चल तू ही बता यार ये कैसी समझदारी है

-रकमिश सुल्तानपुरी