अजनबी से ख्वाब सारे: रूची शाही

भूलकर कैसे उनको, हम सुकून से सो जाएंगे
हैं अजनबी से ख्वाब सारे, कैसे उनमें खो जाएंगे
ऐ जिंदगी तू कर वसीयत एक वफ़ा के नाम की
उनको लगता है कि हम किसी और के हो जाएंगे

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दुआ है कि कोई भी गम खुशी के बाद न आये
उसके लबों पे मेरी खातिर कोई फ़रियाद न आये
वो मुझको भूलकर खुश है तो रहे हरदम मगर
उससे कह दो कि वो भी मुझको याद न आये

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दर्द और आँसू से रिश्ता मेरा जोड़ दिया तुमने
बची खुची उम्मीदों को भी तोड़ दिया तुमने
मुझसे बढ़कर कौन हसीं था आखिर तेरी नज़रों में
जाने किसकी खातिर मुझको छोड़ दिया तुमने

रूची शाही