अपने बोध और बुद्धिमत्ता को बनाए रखें- सुजाता प्रसाद

सच ही कहा गया है कि कुछ भी असंभव नहीं होता है। चाहे वह जीवन का उजला पक्ष हो या काला पक्ष, इस पर संभावना की अपनी पकड़ होती है। जब मोटिवेटेड पर्सन भी डीमोटिवेट हो सकता है, प्रेरणादायी व्यक्तित्व असहाय महसूस करने लगता है और विषम परिस्थितियों में उसके जीवन की रेल भी डीरेल हो सकती है, तब यह बहुत ही खतरनाक स्थिति है, और हमारी जागरूकता के जागने का समय है। तस्वीर के इस छुपे पहलू से हमें कुछ सीख लेने की जरूरत है। इस उलझन भरी दुनिया में आश्चर्य तो तब होता है जब व्यक्ति आत्मविश्वास का पर्याय होते हुए भी जिंदगी से हार जाता है। यह जानते हुए भी कि हमारे जीवन की सबसे मूल्यवान चीज़ स्वयं जीवन है। ऐसे में रूट चेंज करने की सलाह अगर किसी मित्र, रिश्तेदार या किसी अपने से मिल जाती तो रूपहली दुनिया को अलविदा कहने वाले स्थापित स्टार के साथ इतना बड़ा हादसा होने से टल जाता। यह विचारणीय है कि हमारी सतर्कता कब तमस के घेरे में आ जाती है और हम नकारात्मकता के समंदर के बीच खुद को घेर भी लेते हैं। इतना ही नहीं बाहरी तत्वों को अपने मन जहाज में छिद्र करने की अनुमति भी दे देते हैं। और यही एक छोटी सी ग़लती जब हो जाती है तो हम अपने मेंटॉर से भी दूर होते चले जाते हैं और जानते हुए भी उस अनचाहे दलदल में फंस जाते हैं जहां से निकल पाना नामुमकिन हो जाता है।
किसी व्यक्ति के बारे में बिना कुछ सोचे-समझे कुछ भी बोल देना मानव समुदाय की आदत है। बिना संदर्भ को जाने और उस व्यक्ति विशेष की परिस्थितियों को गौर से जाने बिना कुछ भी बोल देना बिल्कुल सही नहीं। हम तो सिर्फ अपना वक्तव्य देना जानते हैं कि वह कितना सफल है, पर कैसे सफल है उस सफ़र को जाने बिना, यह भी कि वह असफल है, पर क्यों, इस पर विचार किए बिना। हम ऐसे ही किसी पर दोषारोपण नहीं कर सकते कि फलां ने ऐसा क्यों किया? ऐसे में तो और भी जब दूसरों की जिंदगी को प्रोत्साहित करने वाले शख्स के साथ कुछ ऐसा हो जाता है तो ठहरे हुए उस समय में रूक कर सोचने की जरूरत हो जाती है। बहुत ही गहराई से सोचने की कि कोई मजबूत दिमाग वाला कैसे अपना मानसिक संतुलन खो सकता है? क्या ऐसा भी हो सकता है? अफसोस,जबकि ऐसा हो चुका होता है।
किसी एक्सपर्ट की सलाह, किसी मनोचिकित्सक की डायग्नोसिस के बाद दी गई राय के साथ साथ एक छोटा सा उदाहरण भी इस सवाल का जवाब दे पाने में समर्थ हो सकता है। जैसे अगर हमारी अनुपस्थिति में हमारे गमले के पौधों में सिंचन न किया गया हो तो पौधे सूख जाते हैं। मतलब स्पष्ट है कि ठीक ऐसे ही इंसानों को भी समय-समय पर रेगुलर देखभाल की जरूरत होती है। इसलिए सतर्क रहते हुए हमें “जो डर गया, वह मर गया” वाली थ्योरी से जरा हटकर भी विचार करने की बहुत जरूरत है। जिधर गड्ढा है उधर से कट कर चलना ही श्रेयस्कर होता है, यह रिमांइड करना भी मायने रखता है। कभी कभी जीवन के सबसे बुरे दौर में “जो डर गया वो मर गया”, इस पंक्ति से प्रोत्साहित होने की जरूरत कतई नहीं होती है। बल्कि इस समय हमें इस सिद्धांत को समझने की कोशिश करना चाहिए कि “जो लोग मन में उपजे भय को बड़ी गंभीरता से लेते हैं विजय श्री उन्हीं के गले में जयमाला डालती है।” ऐसी स्थिति में बचना ही बचाव है। बस अपने बोध और बुद्धिमता को बनाए रखें, बढ़ाएं रखें, फिर जीवन में जिस से भी सामना हो, उस चक्रव्यूह से आप निकल सकते हैं। जब आपकी बुद्धि आपके खिलाफ हो जाती है तो ब्रह्मांड की कोई शक्ति आपको नहीं बचा सकती।
सोचिए अगर आपकी बुद्धि आपके लिए काम कर रही होती है तो क्या आप खुद को आनंद में रखते हैं या तनाव में? सिर्फ अच्छे अनुभव की स्थिति में होने पर ही आपका शरीर और दिमाग सबसे अच्छी तरह काम कर पाता है। सफलता असफलता के बारे में कभी न सोचें। बस यह देखें कि कैसे खुद को एक संपूर्ण इंसान बनाया जाए। हम सभी को पता है कि “जिस तरह सूरज बनने के लिए सूरज को आग बनना पड़ता है, उसको जलना होता है, उसी तरह शंकर बनने के लिए विष का प्राशन करना पड़ता है।” लेकिन जीवन के मंथन में मिले हलाहल का हल ढूंढते ढूंढते उससे निकलने के बजाय उसमें डूब कर असमय जीवन का दान किसी भी समस्या का समाधान हो सकता है क्या, नहीं बिल्कुल नहीं। काश! कि खुद को ख़त्म करते वक़्त, समय का वह पल कुछ सेकंड के लिए हमारे मस्तिष्क को यह मैसेज दे पाता कि “इमपॉसीबल खुद हमसे कहता है आइ एम पॉसिबल।” अकेलेपन के दौर में भी हमें समझना होगा कि यह जीवन की बहुत बड़ी सच्चाई है कि इस संसार में कुछ भी असंभव नहीं होता है। साजिशों के भंवर का ग्रास बनने से पहले, उसका आभास होने के तुरंत बाद पूरे आत्मविश्वास के साथ सावधान होना ही बेहतर होता है। हमें यह जानना होगा कि हमारे हाथ में बस प्रयत्न है। हमारा प्रयत्न प्रभावशाली होना चाहिए यानी कि वह केंद्रित होना चाहिए, एकदम नपा तुला भी। बस हमें अपने बोध और बुद्धिमता को बढ़ाएं रखने की जरूरत है अपनी आती जाती सांसों की तरह।

-सुजाता प्रसाद
नई दिल्ली