ज़िन्दगी के दिन- गरिमा गौतम

कभी धूप कभी छाँव,
कभी खुशी, कभी गम में
ऐसे ही निकल गये,
ज़िन्दगी के दिन…

कभी ग्रीष्म की तपन,
कभी शीत की चुभन
कभी सावन की फ़ुहार में
ऐसे ही निकल गये,
ज़िन्दगी के दिन…

कभी लापरवाही,
कभी फिक्रमंद
कभी यूँ ही पागलपन में
ऐसे ही निकल गये
ज़िन्दगी के दिन…

कभी त्योहार,
कभी रौनके-बहार
कभी यूँ ही गमगीनी में
ऐसे ही निकल गये
ज़िन्दगी के दिन…

कभी अपनों का प्यार,
कभी शत्रु का वार
कभी अपरिचितों के बीच में
ऐसे ही निकल गये
ज़िन्दगी के दिन…

बचपन की मधुरता,
यौवन की मादकता
ढलते जीवन की अनुभवता में
यूँ ही निकल गये
ज़िन्दगी के दिन…

-गरिमा राकेश गौतम
कोटा, राजस्थान