दोस्ती- दीपा सिंह

दोस्ती जिंदगी जीने का दूसरा नाम है
क्या पता कल क्या हो
ऐ मेरे दोस्त तू सलामत रहना
मुझे भूल मत जाना
जो वक्त हमने साथ में गुजारें हैं
उन्हें भूल मत जाना
माना की जिंदगी तेरी हैं
पर दोस्त तो तू मेरी है
मेरे लिए तो तू ही काफी है यार
मुझे किसी और की जरूरत नहीं है
तू मेरी दोस्त नहीं, तू तो मेरी जहान है
खुदा ने मुझे ऐसे फरिश्ते से मिलाया है
ना जाने मेंने कौन सा पुण्य किया था
जो आज तू मेरे पास है
हमेशा मेरे नज़रों के सामने रहना
मुझे छोड़ कर कभी दूर मत जाना
माना की कभी नोंक झोंक हो जाती हैं
पर तू मुझे माफ़ कर देना
पर तू साथ छोड़ कर मत जाना
तेरी दोस्ती की कसम
तेरा साथ मरते दम तक दूंगी
अगर तू मुझे अपना
काबिल समझती है तो
शुक्र है खुदा का उसने
मुझे तुझसे मिलाया
नहीं तो हम इस काबिल ही
नहीं थे

-दीपा सिंह
चंडीगढ़