ग़म बढ़ जाता है: जॉनी अहमद

पेड़ भला कब अपना फल खा पाता है
भेड़ भला कभी ऊनी मफ़लर लगाता है

बच्चों जैसी हरकते करता है वो इंसान
झगड़ा होने पर जो एहसान गिनाता है

ख़ुद ही अपने दर्द की कर ले कोई दवा
क्यों दुनिया के सामने अश्क़ बहाता है

बातों ही बातों में तो बढ़ जाती हैं बातें
बातों को भूल जा क्यों बात बढ़ाता है

यूँ तो पूरे साल ही तेरा ग़म तड़पाता है
पर माह-ए-फ़रवरी में ग़म बढ़ जाता है

जॉनी अहमद ‘क़ैस’