साँस-साँस ज़िंदगी: आशा पांडेय ओझा

आशा पांडेय ओझा

कौन सी क़िताब है
साँस-साँस ज़िंदगी
ढूँढती ज़वाब है
साँस-साँस ज़िंदगी

किस तरफ़ घटे-बढ़े,
चल सका पता नहीं
कौन सा हिसाब है
साँस- साँस ज़िंदगी

हर घड़ी लुटा रही,
उम्र की तिजोरियां
ज्योँ कोई नवाब है
साँस-साँस ज़िंदगी

क्यों धुँआ-धुँआ घिरा,
चार सू हयात के
क्या कोई शिहाब है
सांस-सांस ज़िंदगी

चुभ रही है किरचनें,
काळजै की कोर में
गो कि इक अज़ाब है
साँस- साँस ज़िंदगी

जो कभी नहीं उठा,
कोशिशें हज़ार की
इक निहाँ हिज़ाब है
साँस-साँस ज़िंदगी

बावळे से हम सभी,
उसके पीछे भागते
क्या अजब सराब है
साँस- साँस ज़िंदगी

पेट, पीठ पर लिये,
सुब्ह-सुब्ह दौड़ना
ख़ामख़ा ख़राब है
साँस-साँस ज़िंदगी

बेहिसाब आरज़ू,
बेहिसाब जुस्तजू,
जबकि इक हबाब है
साँस-साँस ज़िंदगी