हाइकु- विनय जैन कँचन

झूमे बदरा
खिला इंद्रधनुष
आई बरखा

पपीहा बोले
पीहू पीहू पीहू रे
मनवा डोले

बोझिल नैना
सजना आन मिलो
प्रित हिंडोले

मन की हूक
प्रितम परदेश
बीते सावन

दृग पटल
छवी हो अनुपम
इक तुम्हारी

विनय जैन ‘कंचन’