महुआ सा महका: स्नेहलता नीर

नैन हुए हैं चार तुम्हीं से, तुम पर सब कुछ वारूँ प्रियतम
मन-मंदिर में तुम्हें बिठाकर, मैं आरती उतारूँ प्रियतम।।

हृदय तरंगित मन बौराया, यौवन लेता है अँगड़ाई।
अंग-अंग महुआ-सा महका, मधुऋतु रूप देख शरमाई।
प्रीति सुधा-रस प्याले पीकर, अनुदिन रूप निखारुँ प्रियतम।।
मन-मंदिर में तुम्हें बिठाकर, मैं आरती उतारूँ प्रियतम।।

तुमको पाकर सब कुछ पाया, दो बाँहों में जगत समाया।
मुस्कानों के मोती देकर, तुमने हृदय कमल सरसाया।
नजर न आओ पल भर को जो, व्याकुल तुम्हें पुकारूँ प्रियतम।।
मन-मंदिर में तुम्हें बिठाकर, मैं आरती उतारूँ प्रियतम।।

जोड़ लिया है तुमसे साजन, जनम-जनम का मैंने नाता।
भाग्य उदय हो गया तुम्हें पा, बरसाता है कृपा विधाता।
आओ बैठो सम्मुख मेरे, अपलक तुम्हें निहारूँ प्रियतम।।
मन-मंदिर में तुम्हें बिठाकर, मैं आरती उतारूँ प्रियतम।।

साथ चलूँगी साया बनकर,पथरीले पथ से क्या डरना।
दो से एक हुए हम दोनों, साथ हमें अब जीना मरना।
पथ-कंटक पलकों से चुनकर, नित प्रति राह बुहारूँ प्रियतम।।
मन-मंदिर में तुम्हें बिठाकर, मैं आरती उतारूँ प्रियतम।।

स्नेहलता नीर