कोई ख़्वाब बुनें: रकमिश सुलतानपुरी

खट्टा हो व्यवहार जमाने से अच्छा
अपना यूँ क़िरदार छिपाने से अच्छा

जलता है परवाना तो जल जाने दो,
झूठी शम्मा यार जलाने से अच्छा

झाँक गिरेवां ख़ुद का तुम भी तो देखो
गैरों को गद्दार बताने से अच्छा

यार मुनासिब हो तो मुझसे दूर रहो,
झूठा-मूठा प्यार जताने से अच्छा

आप बताओ अपनी अच्छाई मुझको,
झूठा बरखुर्दार बनाने से अच्छा

ग़म हो तो कोने में जाकर रो लो ख़ूब,
ये झूठी मुस्कान दिखाने से अच्छा

आओ रकमिश बैठो कोई ख़्वाब बुनें,
यूँ गलफ़त में उम्र गंवाने से अच्छा

रकमिश सुल्तानपुरी