कभी अलविदा न कहना: डॉ संगम वर्मा

ये भी कमाल है न
आप सबका
दाख़िला लिया
मेहनत की
टॉपर्ज़ बनें
जीत हासिल की
मस्ती में नाचते गाते
सैल्फ़ियों के बाज़ार में
पीजीजीसीजी-42 के चारागार में
हिन्दी विभाग को
अलविदा और ख़ुदा हाफ़िज़ कहते चलते बनें।

सिर्फ़ छः सत्र….
जी हाँ! दोस्तों,
बस छः  सत्र..!
इन छह सत्रों में सभी इत्र की तरह महकते रहें हैं औरों को भी महकाते रहे हैं सबको अपनी सादगी आवारगी कामयाबी से भाते रहे, चौंकाते रहे, धड़काते रहे साथ साथ हिन्दी विभाग का परचम लहराते रहे।

यादों का ट्रक कब लोड होकर सबके दिलों के पते पर पहुँचा पता न चला।

और सत्र गुज़र गया
यादों का काफ़िला सँवर गया
और आप
बड़ी जल्दी
अलविदा और ख़ुदा हाफ़िज़ कहते चलते बनें

लेकिन
पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त… का जो मैटिनी शो वो हम देख न सकें
संकट तो है पर हमारे दिलों को, भावनाओं को कहीं आहत नहीं करता, जोड़ता है सदैव के लिए

क्यूँकि ईश्वर सबकी आँखों में हैं
हमें सद्भावना देती है, जीना सीखती है, बढ़ना सीखाती है
दिलों को जीतना, रँग में रँगना, ये हिन्दी विभाग की देन है।

यहाँ मिसालें दी नहीं जाती बल्कि मिसालें बनतीे हैं
ऐसा सबकी जुबां पर होता है
और आप हैं कि अलविदा ख़ुदा हाफ़िज़ कहते चलते बने
कभी खिलखिलाये
कभी मुस्कुराये
इक दूजे की बातों के कुरकुरे खाये
सबके चेहरे की रौनक बनें

फ़्रैशर्स से फेयरवल तक की यात्रा में जितने भी स्टेशन आये सबने उतर कर अपने अपने हिस्से की खट्टी मीठी यादों की रसभरी खायी हैं

धूम-धड़ाके के साथ ढ़ोल नगाड़े के साथ पंजाबी बीट की धुनों के साथ, गीत,कविता, जुगलबन्दी,कॉमेडी,रासलीला,कव्वाली ये सब करके आप सब अलविदा और ख़ुदा हाफ़िज़ कहते चलते बने।

सच बात तो यह है कि
ये दिल कहे, सबके दिल कहें, वन्स मोर, वन्स मोर, वन्स मोर
जीवन के शोरगुल में शोकाकुल न होना कभी
याद करना हमें हमारी बातों को

सदाओं को दुआओं को
जाते जाते बस ये जान लेना साथियों
जुड़ना और सबको जोड़ना
जुड़ाव रखना…. ज़रूरी है
क्यूँकि जाना अगर नियति है तो आना भी नियति है
इसलिए कभी अलविदा न कहना

डॉ संगम वर्मा