पास और दूर: आलोक कौशिक

वो जब मेरे पास थी
थी मेरी ज़िंदगी रुकी हुई
अब वो मुझसे दूर है
ज़िंदगी फिर से चल पड़ी

जब था उसके पास मैं
मैं नहीं था कहीं भी मुझमें
अब केवल मैं ही मैं हूँ
वो कहीं नहीं है मुझमें

जब थी मेरे पास वो
था उसे खोने का डर
खोकर उसको हो गया
अब हर डर से बेख़बर

आलोक कौशिक
साहित्यकार एवं पत्रकार
मनीषा मेंशन,
बेगूसराय, बिहार