बाल विवाह: त्रिवेणी कुशवाहा

न मिलने वाले पुण्य की
अभिलाषा खिंचकर लाई,
छिनकर बच्चों का बचपन
बजवा दिया शहनाई।

शादी-ब्याह का अर्थ क्या है
दोनों नहीं समझते थे,
पुतरा-पुतरी का खेल समझकर
खिल-खिलाकर हँसते थे।

आस थे दादा-दादी के
पोता का विवाह देख तर लेंगे।
कुँवारी कन्या को ब्याह कर माता-पिता
स्वर्ग में स्थान पक्का कर लेंगे।

अहसास नहीं था किसी को
कि वे बड़ा अपराध करते हैं,
बच्चों का अधिकार छिनकर
पाप का भागीदार बनतें है।

उससे बड़ा अपराधी वह है
जो बाल विवाह को बढ़ावा देता है,
स्वर्ग का सपना दिखलाकर
पोथी-पतरा पर चढ़ावा लेता है।

त्रिवेणी कुशवाहा ‘त्रिवेणी’
खड्डा-कुशीनगर, उत्तर प्रदेश