साहित्यकाव्य दो मुक्तक- पीएस भारती By Sub-Editor - February 6, 2020 WhatsAppTwitterFacebookKooCopy URL आस्था अस्तित्व का आधार है बिना इसके साधना बेकार है मानिए तो पत्थरों में ईश है सृष्टि का हर देवता साकार है। ÷+÷+÷+÷ श्रंखलाएं टूटती हैं टूटने दो आस्थाएं रूठती हैं रूठने दो हम बने इंसान यदि इसके लिए प्रार्थनाएँ छूटती हैं छूटने दो – पीएस भारती