आदमी का भरोसा नहीं: रकमिश सुल्तानपुरी

तुमने क़िरदार कोई भी परखा नहीं
आजकल आदमी का भरोसा नहीं

ख़्वाब कैसे बुने दायरों से अलग,
जब किसी का यहां ख़्वाब पूरा नहीं

जो मेरे दिल में है, मेरी धड़कन में है,
महफिलों में मगर उसकी चर्चा नहीं

इब्तिला इश्क़ की ग़ैर वाज़िब है पर,
शक़्स हर कोई दुनिया में अच्छा नहीं

ये मुखौटे नहीं हमनफस के लिए
सेफ्टी है ख़ुदी का ये धोख़ा नहीं

मानता हूँ यहां सच है महँगा मगर,
न बिके झूठ इतना भी सस्ता नहीं

इश्क़ तो खेल रकमिश जवानी का है,
सच कहूँ इश्क़ में कोई बच्चा नहीं

रकमिश सुल्तानपुरी