याद तुम्हारी आये: रूची शाही

रूची शाही

थपकी दे दो ना अपनी
सोना मुश्किल लगता है
रो तो लेते हैं हम, पर
चुप होना मुश्किल लगता है

याद तुम्हारी आये तो
खुद पे ही झुंझलाते है
क्यों चाहा तुमको इतना
कि अब चाहत पे पछताते हैं
मेरी सारी उलझन का
एक तू ही तो हल लगता है

रो तो लेते हैं हम पर
चुप होना मुश्किल लगता है

तुम तो नही आते पर
तुम्हारी यादें चली आती है
ठंडी ठंडी इन रातों को
और सर्द बनाती है
सो जाती तुझसे लिपटकर
तू मुझको कम्बल लगता है

रो तो लेते हैं हम पर
चुप होना मुश्किल लगता है

कितना समझाया तुमको
यूँ बीच राह में मत छोड़ो
तोडना ही है अगर तो
कहकर फिर रिश्ता तोड़ो
बात कभी न मानी मेरी
तू बेहद अड़ियल लगता है

थपकी दे दो ना अपनी
सोना मुश्किल लगता है
रो तो लेते हैं हम, पर
चुप होना मुश्किल लगता है

कविता- सिवाय मेरे: रूची शाही