बहन: रूची शाही

रूची शाही

मेरी कमी की वो भरपाई है
उसको लिखते हुए आँख भर आयी है
उसकी ममता को कम न आंके कोई
माँ नही है पर माँ की परछाई है

अपने दामन में गम को पाला बहुत
खुशियों ने भी है उनको टाला बहुत
खुद बिखरी रही मुंह से कुछ न कही
मेरी बहनों ने मुझको संभाला बहुत

जाड़े की गुनगुनाती हुई धूप हैं
ग्रीष्म में साये का स्वरूप हैं
अपनी छवि देखती हूँ जिनमें मैं
मेरी बहनें वो दर्पण का रूप हैं