भीगी पलकें: पिंकी दुबे

भीगी पलकें
अब सूख गई हैं
कह रही वह फिर भी
मूक होकर जो
गुजरी है इन पर,

जेहन से भी वो अब
ओझल हो गया है
लब मानो सिल गये हों
जैसे, कुछ रहा ही नहीं कहने को
मन में अब कोई भाव भी नहीं
ना दुःख के ना ख़ुशी के,

अकेली अंजान राहों पर
निकली हूँ शायद कोई मेरे
इस सफर में मिल जाये
साथ चलने को

पिंकी दुबे