काल का प्रवाह: प्रार्थना राय

स्मृतियों पर छाया कोहरा ,अंतराल पर किसका पहरा,
समय की प्राचीर पर, उम्र का छाप पड़ा गहरा

धुंध सी स्मृतियों पर छाई, बर्फ सी चादर जमी,
समय की पुकार है या, उम्र का कोई पड़ाव

उपस्थिति का भान नहीं, वार्ता का अर्थ नहीं,
संग का मूल्य नहीं, भाव का तोल नहीं

मुख पटल पर कैसी, झुर्रियों का प्रदर्शन,
नेत्रों की ज्योति ओझल, श्वांसो में कैसा क्रंदन

हस्त क्रियाहीन हुए, पाव शिथिल पड़े
उम्र न जाने किस असंगत, कथा की कर रही विवेचना

स्वयं का स्वरूप देख, मन हुआ भयभीत सा
मन की व्यथा से, कौन परिचित भला

काल के किवाड़ पर, दे रहा दस्तक कोई,
क्या किया क्या धरा, कर्म अपनी भूल गया

 अकुलाहट भरा क्षण, मन उबसा गया,
 काल के प्रवाह में, उम्र की कांति धूल रही

  प्रार्थना राय
  देवरिया, उत्तर प्रदेश