मातृभूमि के लिए: अनिल मिश्र

पपीहा धीरे-धीरे बोल

शुभ्र, सुवासित, नीरव रजनी
तंद्रिल नयन लिए भू-जननी,
शान्त, स्निग्ध, बोझिल पलकों को
दे स्वर रे मत खोल
पपीहा धीरे-धीरे बोल

देख, न तारक–दल में हलचल
चंद्र-किरण शोभित नभ निश्चल,
पी-पी के रव कर मतवाले
डाल-डाल मत डोल
पपीहा धीरे-धीरे बोल

मधुवन मौन, मंद्र तरु, किसलय
मधुर, मनोहर, मदिर मदन-लय,
चंचु खोल रस बरसा दे खग
विरह-राग मत घोल
पपीहा धीरे-धीरे बोल

है निरभ्र विस्तृत कुल अम्बर
अतल सिन्धु निःशब्द, शान्त-सर,
मंथर-धार, सुप्त-सी लहरें
जो थीं गतिमय, लोल
पपीहा धीरे-धीरे बोल

अनिल मिश्र प्रहरी
पटना, बिहार