उपेक्षा: जसवीर त्यागी

एक हरे-भरे पौधे को
तुम घर लाते हो
चाव से देते हो खाद-पानी

मुरझाने से बचाते हो
उसे बढ़ता, खिलता, फूलता हुआ
देखते हो निज नयनों से

तुम्हारे आचरण में उतरती है
एक पौधे की आत्मीयता और पवित्रता
तुम्हारे शब्दों को महकाती है
उसकी सुगंध
तुम एकांत में भी खिले-खिले रहते हो

फिर धीरे-धीरे 
तुम अनदेखा करने लगते हो पौधे को
सूखने लगती है उसकी हरीतिमा
दूर उड़ते हुए दिखते हैं कोमल पात

और फिर एक दिन 
तुम्हारे ही परायेपन और उपेक्षा से
सूखकर दम तोड़ देता है 
तुम्हारा लाया हुआ प्रिय पौधा

कितने अचरज की बात है
तुम पर किसी पौधे की हत्या का
कोई आरोप भी नहीं लगता

जसवीर त्यागी