प्रेम: अंकिता वासन

अंकिता वासन

प्रेम कहने मात्र को तो छोटा सा शब्द है, परंतु इसकी व्याख्या करनी बहुत कठिन है। खैर यदि अब प्रेम की बात हो रही है तो प्रेम एक जोड़ी में होता है। जैसे- भाई-बहन, माता-पिता, गुरु-शिष्य भक्त का भगवान से दोस्त का दोस्त से प्रेमिका का प्रेमी से पत्नी का पति से अब यदि प्रेम की बात निकली है तो मैं ज्यादा वक्त बर्बाद नहीं करूंगी।

अमित और सुनैना बहुत अच्छे पति पत्नी है, उनका प्रेम मानो जैसे एक प्रेमी जोड़े का होता है। एक साथ खाना खाते थे, एक साथ घूमने जाते थे एक दूसरे के बिना एक पल भी नहीं रहते थे। बहुत प्रेम था, दोनों में अमित सॉफ्टवेयर कंपनी में नौकरी करता था और सुनैना भी बहुत पढ़ी लिखी थी सब चीजों में निपुण थी, सिलाई कढ़ाई बुनाई और एक अच्छी ब्यूटीशियंस भी थी।

परंतु अभी शादी को कुछ ही समय बीता था कि अमित और सुनैना में अनबन होने लगी वह कहते हैं ना “हाथी के दांत खाने” के और दिखाने के और होते हैं। यह तब हुआ जब अमित का तबादला हुआ जो अमित एक पल भी सुनैना के बिना नहीं रहता था, अब वह उसको एक फोन तक नहीं करता है।

सुनैना कुछ समझ नहीं पा रही थी कि अचानक से अमित का व्यवहार इतना बदल कैसे गया वह यह सोच कर बहुत दुखी होती है।  परंतु अपना दुख किसी को नहीं बतलाती फिर वह मन ही मन सोचती है कि शायद ऑफिस में काम ज्यादा होगा इसलिए ऐसा हो रहा है।

वह यह सब बातें किसी को बता भी नहीं सकती वह अपने मन ही मन सोचती है कि सब ठीक हो जाएगा धीरे-धीरे ठीक होने के बजाय सब बिगड़ गया। अमित के परिवार वाले जो सुनैना को इतना प्रेम करते थे, उसके पांव को भी जमीन पर नहीं लगने देते थे, वह घर वाले आज उसकी इज्जत उछालने में लगे हैं।

सुनैना की सास उसको ताने कसती है। जो हाथ जोड़कर उसके घर उसका रिश्ता लेने आए थे, वही आज कहते हैं कि पता नहीं अमित को तुममे क्या दिखा जो तुमसे शादी की उसको तो बहुत अच्छी अच्छी लड़कियों के रिश्ते आते थे।

वही सुनैना के ससुर हैं, जो जब सुनैना के पिता जी सुनैना की शादी को लेकर चिंतित होते थे, तो उन्हें समझाते थे कि आप चिंता मत करें हम बहू नहीं बेटी लेकर जा रहे हैं। आज वही सुनैना को बुरा भला कहते है।

अब मैं कैसे बोलूं कि पापा की परी अब परी नहीं रही। वह एक दासी बनकर रह गई है और दहेज के लोभिया के द्वारा दिन प्रतिदिन प्रताड़ित हो रही है, शायद इसी को प्रेम कहते हैं।