इश्क़ में नाकाम हो कर आये हैं- निशांत खुरपाल

सरे-बाज़ार हम आज, नीलाम होकर आए हैं,
दुनिया जीत ली, पर इश्क़ में नाकाम हो कर आए हैं,

हीरो का व्यापारी होकर, पत्थर इकट्ठे करने में लगा रहा,
जो पास था बेशकीमती, वो कोहिनूर खोकर आए हैं,

किसी अपने की तलाश में निकले थे बरसों पहले,
अपना तो कोई मिला नहीं, खुद को भी खोकर आए हैं,

कि सच्चे दिल से जो जाए उस दर पर कोई, तो बात ज़रूर बनती है,
हम भी गए थे उसे पाने खुदा के दर पर, और घंटों रोकर आए हैं,

तुम्हें किसने कहा, कि किसी को पाना ही इश्क़ है?
कांटे समेट लिए सारे, और यार के रास्ते में खुशियाँ बो कर आए हैं,

अपने लिए तो यहाँ, हर कोई माँगता है ‘खुरपाल’
उसे मिल जाए उसका चाहने वाला, बदले में अपना खुदा खोकर आए हैं

निशांत खुरपाल ‘काबिल’
अध्यापक,
कैंब्रिज इंटरनेशनल स्कूल, पठानकोट