मन का दर्पण: अतुल पाठक

कविता मन का इक दर्पण है,
इस दिल से उसको अर्पण है

ये आवारा नादाने-दिल
मोहब्बत में समर्पण है

श्रृंगार प्रेम का मिश्रण है,
शून्य हृदय में रोपण है

यह अर्जन नहीं नवसृजन है,
शब्दों से चमकती नवकिरण है

अनकहा हर इक कथन है,
ये भावनाओं से गहन है

अतुल पाठक ‘धैर्य’
हाथरस, उत्तर प्रदेश