किसान की व्यथा: आलोक कौशिक

मैं किसान हूँ
अब आपने अनुमान लगा ही लिया होगा
कि मेरे पिता एवं पितामह भी
अवश्य ही किसान रहे होंगे

आपका अनुमान सही है श्रीमान
मेरे पूर्वज भी थे किसान
किसान का पुत्र किसान हो या ना हो
किसान का पिता अवश्य किसान होता है

किसान होना तो अभिशाप समझा जाता है
अगर विश्वास ना हो तो आप कभी किसी को
किसान बनने का आशीर्वाद देकर देख लीजिए
आपका भ्रम अवश्य दूर हो जाएगा

किसान पर लिखना और बोलना आसान है
कठिन तो है किसान बनना
किसान बनकर जीवन व्यतीत करना आसान नहीं होता
धैर्य, साहस और समर्पण चाहिए

किसान को संतान सी प्रिय होती है
लहलहाती हुई फसल
और परम प्रिय को खोने की पीड़ा के समान ही होता है
फसलों के नष्ट होने का कष्ट

किसान की व्यथा को
इस भूतल पर
केवल किसान ही समझ सकता है
और कोई नहीं

आलोक कौशिक
साहित्यकार एवं पत्रकार
बेगूसराय, बिहार-851101