क्या मंजर है: अर्चना श्रीवास्तव

गली-गली में शव का मंजर,
डरे-डरे सारे नारी-नर
धरती कांप उठी है अंदर,
सिसक उठा सारा अभ्यंतर

ऐसी घनी तबाही आई,
जीवन का हर डोर फँसा है
जिधर देखिये उधर दिखे,
मानव हो कमजोर फँसा है

बीमारो का अस्पताल में-
अंदर जाना मुश्किल है
मरे हुए का सडकों से-
लाश उठाना मुश्किल है

कोरोना के नाम यहाँ-
अन्य बीमारी कातर है
कहीं नहीं ईलाज मिल रहा,
मरने का ऐसा डर है

पास-पडोसी चीख रहे हों,
लोग पूछना भूल गये
कोई पीडा अनदेखा है,
सब, कोरोना पर तूल गये

बिना मौत के मरने वाले-
अब सडकों पर चीख रहे
अस्पताल से अस्पताल तक
स्वजन भागते दीख रहे

डाक्टर, नर्स, कम्पाउन्डर गायब,
निजी अस्पताल में ताला है
अन्य बीमारी का बीमार तो-
सूखा मरने वाला है

भूख भरे आधे भारत में,
बाढ का पानी उपर चढ़ रहा
भोजन-पानी-दवा बिना,
मृत्यु आकडा रोज बढ रहा

भारत! भारत!! भारत!!! जागो!
जगना आज जरूरी है
अपनो का सहयोग करें हम,
कैसी भी मजबूरी है

अर्चना कृष्ण श्रीवास्तव