मैं चला जाऊँगा: सुरेंद्र सैनी

मेरे हालात से तंग आकर चला जाऊँगा
मुफलिसी के संग आकर चला जाऊँगा

आइनों में भी कोई गैर आकर बैठ गया
अपनी सूरत से दंग आकर चला जाऊँगा

कुछ हुआ फर्श पर हर रंग बिखर गया
खुराफ़ात में बदरंग आकर चला जाऊँगा

डूबने लगा ‘उड़ता’ तन्हा सी गहराईयों में
शून्य के बीच अनंग आकर चला जाऊँगा

सुरेंद्र सैनी बवानीवाल ‘उड़ता’
झज्जर, हरियाणा-124103
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