मत कर इतने जुर्म- दीपा सिंह

मत कर इतने जुर्म कि,
भगवान भी माफ़ ना कर सके तुझे,
तू इतना बदल गया,
कि आज अपने स्वार्थ के लिए,
एक जानवर को मार दिया

सोचा नहीं था कभी कि,
तू किसी बेजुबान को इस क़दर मारेगा,
तू नहीं जानता कि ये भी,
इसी दुनिया के जीव हैं

तूझे मारने का हक़ किसने दिया,
ये तो इस दुनिया का अहम हिस्सा हैं,
इन्हीं की बदौलत हम भी है,
नहीं तो हम भी नहीं है

माना की ये बोल नहीं सकते हैं,
पर महसूस तो कर सकते हैं,
हमने इनका रहन-सहन छीना ,
भिर भी ये खामोश है

इनका भी उतना ही हक़ है ,
इस दुनिया में जितना हमारा है,
आज इंसान पढ़ लिख कर इतना,
निर्दयी बन गया है कि,
किसी को इतनी बैरहमी से मार सकता है

क्या गलती थी उस मासूम हाथी की,
जिसने इंसान पर भरोसा किया,
वह तो सिर्फ अपने कौख में पल रहे
बच्चे की हिफाजत करना चाहतीं थीं

फिर क्यूं इंसान ने उसे इतना बड़ा दंड दिया,
इतनी सी तो गलती थी उसकी,
कि इंसान पर भरोसा किया उसने,
लज्जा आती है मुझे ऐसी इन्सानियत पर,
जिसने इतना बड़ा जुर्म किया

उसे उसके किए गलती पर शर्मिंदा होना पड़ेगा,
इसका दंड उसे मिलना चाहिए,
नहीं तो आज उस मां का अपमान होगा,
जिसने अपने साथ-साथ अपने कोख,
में पल रहे बच्चे को भी मार दिया

क्या गलती थी उस नवजात की
जिसने इस दुनिया में आने से
पहले ही अपने प्राण गंवा दिए

दीपा सिंह
चंडीगढ़