मैं या मेरा सपना- अरुण कुमार

उस घुप अंधेरी रातों में,
हमने जो देखा सपना था
टूटा सपना अरमा बिखरे,
गैरों का था नहीं अपना था
कहते हैं सुबह के सपने ही,
सच में अंगड़ाई लेते हैं
सच मे सपने वे ढल न सके,
टूटे सपनों की सफर नीरस
में एक पल भी हम चल न सके
परवाज में थे ऊंचे सपनों के
पर मंजिल तक हम उड़ ना सके
टूटा सपना मंजिल खोया
हमसफर मेरा न रहा गोया
तन्हा-तन्हा इन राहों में
खुले गगन की पनाहों में
धुंध उठा छाया कोहरा
उस लंबे सफर की खोई डगर
सपना टूटा मंजिल खोया
जागा तो देखा झूठा था
वह मैं नहीं था मेरा सपना था

-अरुण कुमार नोनहर
बिक्रमगंज, रोहतास
संपर्क- 7352168759