यादें: मनोज कुमार

तेरे शहर से मेरे घर तक,
कोई आता जाता रहता है,
तेरी गलियों से निकल कर,
रोज मेरी खिड़की तक आता है,
हवा के झोंके के साथ रोज,
बालकनी तक तेरी खुश्बू आती है,
बस तुम नहीं आती हो पास मेरे,
तुम्हारी याद में पूरी जमात आती है,

तुम्हारे लटकती जुल्फों के झरोखें से,
एक नूर से चला आता है
तुम्हारे बाली के वो मोतियों में,
मेरा चेहरा मुझकों दिखता है,
तुम छत पर जो रोज जाती हो,
तुम्हारी पायल पागल सी बुलाती हैं,
वो धूप में सूखता दुप्पटा पीला,
जो मुझसे लिपटने को मचलता है,
बस तुम नहीं आती हो पास मेरे,
तुम्हारी याद में पूरी क़ायनात आती है,

वो मंदिर में रोज शाम का दिया,
मेरे मन मन्दिर को रोशन करता है,
तुमने एक बार बात की है बस मुझसे,
वो रोज मेरे कानों में गूँजता है,
कब तक जीऊंगा इन यादों के सहारे,
याद से मैं तुमको रोज याद करता हूँ,
बस तुम नहीं आती हो पास मेरे,
तुम्हारी याद में मैं तुमको जीता रहता हूँ

-मनोज कुमार