मेरा मीत: संजय कुमार राव

आकुल पथ की चिर अभिलाषा
स्वेद कणों से भीगी काया
तप्त दुपहरी के इस पल में
तरुवर की मिल जाए छाया
प्यासे मन को शीतल कर दे
प्यारा मीत मुझे जो मिल ले

क्लान्त गात की सुप्त चेतना
थकी उनींदी मेरी पलकें
शय्या पर पड़ते निढाल ही
जैसे खोलें मन की गिरहें
सपनों के डैने फैला दे
प्यारा मीत मेरा जो लख ले

जीवन के झंझावातों में
करते अपनी अटल साधना
पथ से विचलित हुए बिना ही
जीवन राग सुनाते चलना
आसानी से सम्भव कर दे
मेरा मीत जो मुझसे मिल ले

‘निज’ से ‘सब’ की सोच लक्ष्य कर
तय ज्यों करते हम मर्यादा
सामाजिक दायित्व हमारे
‘हम’ है मेरे ‘मैं’ से ज्यादा
साहस मेरे दम में भर दे
मेरा मीत साथ जो चल ले

संजय कुमार राव