मित्र के चले जाने के बाद: जसवीर त्यागी

मित्र के चले जाने के बाद
मैं गया उनके घर
मिला उनके परिवार से

देखते ही मुझे
किसी फव्वारे से फूट पड़े वे

मैं चाहकर भी रो न सका
अंदर ही अंदर
रह-रहकर घुमड़ता रहा बार-बार बहुत कुछ

मित्र की पत्नी को
कुछ कह न सका
उनके बच्चों से आँख मिला न सका

आने-जाने वाले
दुनियादारी के व्यावहारिक वाक्यों से
पोंछते रहे उनके आँसू-

होनी को कौन टाल सकता है?

समय ही बलवान है
सभी को जाना है देर-सबेर

जरूरत हो तो
याद कीजिएगा जरूर
हम सब हैं

मैं खामोशी के कुएँ में फंसा खड़ा रहा

मृत्यु पर क्या कहा-सुना जाये?
बस यही सोचता रहा।

जसवीर त्यागी