जगजननी सृष्टि रचयिता माँ: अनामिका गुप्ता

अनामिका गुप्ता

सृष्टि है तू कुदरत है
जन्नत है तू मन्नत है
तुझ से ही तो दुनिया की
मिलती खुशियां और दौलत है

दर्द सहे और उफ न करे
तू ममता की प्रति मूरत है
हर तूफां से लड़ना सिखाए
मेरी हिम्मत है तू ताकत है

करने को ममता की रक्षा
दुर्गा काली बन जाती है
कभी ना थकती कभी न हारे
त्याग पे त्याग किये जाती है

तुझ पर क्या मैं रचना लिखूं
तू खुद ही एक रचियता है
अक्स तेरा है मुझमें समाया
अस्तित्व तेरा है मुझमें समाया
बस तू ही तो मेरी अस्मिता है

क्या लिखें तुझ पर कैसे लिखें
कैसे शब्दों में महिमा गाएं
तन मन धन सब कर दें अर्पण
फिर भी ना कर्ज चुका पाएं

जगजननी सृष्टि रचयिता माँ
चरणों में तेरे शीश झुकायें