ज़ख़्म मेरे दिल के: रूची शाही

हक चाहत का अदा कर पाओगे क्या
मैं तो रोज़ मरी हूँ, मर पाओगे क्या
चाँद सितारों वाली बातें छोड़ो तुम
ज़ख़्म मेरे दिल के भर पाओगे क्या

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अपनी अना की खातिर तोड़ा गया उसे
मरोड़ा गया उसे, निचोड़ा गया उसे
मुझे याद है कि एक बड़े से घर से
बेघर बनाके फिर छोड़ा गया उसे

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तेरी यादों को हमने आँखों में भर के देखा है
थोड़ा सा जिया है और ज्यादा मर के देखा है
ऐ मुहब्बत तू कभी किस्मत में मेरी थी ही नहीं
हमने तुझको कितनी बार ही कर के देखा है

रूची शाही