नागफनी- मुकेश चौरसिया

कितनी सुंदर हो तुम
तुम्हारी सुंदरता का हमें
एहसास ही नहीं था
हम तो बस गुलाबों
से दिल लगाते रहे
तुमसे दूर-दूर जाते रहे
काँटों में सौंदर्य?
यह भान ही नहीं था
गुलाबों को देखकर
हमेशा तोड़ लेने की इच्छा हुई
उसे पास से देखें,
अपने कोट में लगायें
यह था उसके प्रति हमारा प्यार
और प्यार जताने का तरीका भी

सुनो नागफनी!
फूलों की आड़ में
कोई काँटा जब भी चुभा,
सारी सुंदरता काफूर हो गई
गुलाबी कली हमारे दिल से दूर हो गई
यकीनन
अपनेपन की नर्मी और कोमलता की आड़ में
छिपे ये काँटे
अपनत्व की तलाश में
बढ़ती अँगुलियों को
जब भी चुभते हैं,
तो पीड़ा भीतर तक सालती है
इसलिए नागफनी
मेरी बेटी तुम्हैं अपने खिलौनों जैसा
पालती है

सुनो नागफनी!
तुम्हारे ये काँटे
तुम्हारी संपूर्णता है
तुम्हारा सौंदर्य हैं
तुम्हारा संसार है
तुम्हारा अस्तित्व है
तभी तो तुम्हारा कोई काँटा
जब भी चुभता है,
मेरी बेटी तनिक नहीं रोती है
क्योंकि वहाँ कोई
गुलाबी ख्वाहिश नहीं होती है
तुम प्रतीक हो
खुलेपन का
खरेपन का
सच्चाई का
तुमने अपने काँटे कभी छुपाये नहीं
कि यदि कोई काँटा कभी चुभे
तो कोई दुख मनाए तो नहीं
मेरी बेटी जानती है
काँटे उनके ही सीने में जड़े होते हैं
जो रेगिस्तानी तपिश में पलते और बड़े होते हैं

-मुकेश चौरसिया
गणेश कॉलोनी,
केवलारी, सिवनी