नज़र-ए-हुस्न- मनोज शाह

तू नज़र-ए-हुस्न है
मैं मिसाल ए इश्क़ हूँ
तू खुदा की नूर है मैं बुझा
हुआ टिमटिमाता हुआ चराग़ हूँ

है अभी मुझे यकीं
इस जनम में वस्ल हो
ये यकीं अस्ल हो मैं अभी
दुआओं में हवाओं लाजवाब हूँ

सोलह दरिया
पार की तब तेरा शहर
मिला तूने सुनी थी जो सदा
मैं वही आवाज़ हूँ वही आगाज़ हूँ

आग में सुरुर है
और दर्द भी मजबूर है
जल रहा हूँ शौक से मैं हिज्र
का माहताब नहीं आसमां का आफ़ताब हूँ

-मनोज शाह मानस
नई दिल्ली