पेड़ों की पुकार- वंदना कुमारी

मैं हूं तुम्हारा वही
चिरस्थायी मित्र
सर्वदा तुम्हारे हित में
रहता हूं उपस्थित

ना काटो मुझे
ना मिटाओ मेरा अस्तित्व
मैं मानता हूं
तुम्हारी शक्ति है प्रबल
पर यह भी जान लो
है जीवन तुम्हारा मुझमें ही
गर मैं नहीं तो तुम नहीं

मेरे हर अंग हैं तुम्हारे लिए लाभकारी
तुमने मेरी जड़ों को मिटाया
बदले में मृदा अपरदन और भूस्खलन को पाया
मैं नहीं हूं तुम पर आश्रित
स्वयं बनाता हूं अपना भोजन
आप खाता हूं औरों को भी खिलाता हूं

तुमने मुझे ठुकराया
हे मानव!
आज जीना दूभर पाया
जो दे रहा हूं मैं मुफ्त में तुम्हें
उसे खरीद रहे हो ऑक्सीबार में क़ीमत देकर

बना लिया मुझे मिटाकर
कंक्रीट का आलीशान बंगला
अब सुनामी और भूकंप ने
जब आतंक है मचाया
फिर याद है मुझे फ़रमाया

मैं नहीं हूं तुम-सा
अंहकारी व स्वार्थी
मैं आप झुकता हूं
दूसरों को भी झुकना सिखाता हूं

बनों विनम्र बनों परोपकारी
रहो प्रसन्न और हितकारी
अब भी अपना लो मुझे
अपना बना लो मुझे
मुझे अपनाओगे तो
खुद को जीवित पाओगे
नहीं तो मेरे मिटने से
तुम भी मिट जाओगे

-वन्दना कुमारी
सहायक प्राध्यापिका,
देवकी देवी जैन मैमोरियल कॉलेज फॉर वूमेन, लुधियाना